मृत व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट: दरोगा की लापरवाही या साजिश?, मुख्य आरोपी पर लगाया आरोप

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें आठ साल पहले मर चुके व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। यह घटना पुलिस तफ्तीश में गंभीर लापरवाही को उजागर करती है। उझानी कोतवाली के दरोगा मुकेश त्यागी ने इस मामले में अपनी सफाई में मुख्य आरोपी पर साजिश के तहत गुमराह करने का आरोप लगाया है। दरोगा का कहना है कि मुख्य आरोपी ने मृत व्यक्ति जसपाल का नाम जांच में शामिल कराने के लिए उन्हें भ्रमित किया।
बदायूं।

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें आठ साल पहले मर चुके व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। यह घटना पुलिस तफ्तीश में गंभीर लापरवाही को उजागर करती है। उझानी कोतवाली के दरोगा मुकेश त्यागी ने इस मामले में अपनी सफाई में मुख्य आरोपी पर साजिश के तहत गुमराह करने का आरोप लगाया है। दरोगा का कहना है कि मुख्य आरोपी ने मृत व्यक्ति जसपाल का नाम जांच में शामिल कराने के लिए उन्हें भ्रमित किया।

दरोगा की सफाई: साजिश के शिकार हुए

उझानी कोतवाल को दिए अपने बयान में दरोगा ने दावा किया कि उन्होंने मुख्य आरोपी राजपाल से पूछताछ के दौरान जसपाल नाम के व्यक्ति का नाम जांच में प्रकाश में आया। दरोगा का कहना है कि जब राजपाल से जसपाल को बुलाने को कहा गया, तो वह एक व्यक्ति को लेकर आया और कहा कि यही जसपाल है। दोनों ने कोई पहचान पत्र नहीं दिखाया, और दरोगा ने उन पर भरोसा करते हुए नोटिस तामील करवा दिया और चार्जशीट में जसपाल का नाम शामिल कर दिया।

दरोगा का यह बयान पुलिस तफ्तीश में लापरवाही और गैर-पेशेवर रवैये को उजागर करता है। उन्होंने बिना किसी सत्यापन के नोटिस तामील करा दिया और चार्जशीट दाखिल कर दी। इससे स्पष्ट होता है कि जांच प्रक्रिया में उचित सावधानी नहीं बरती गई थी, जो कि कानूनी दृष्टिकोण से गंभीर भूल मानी जाती है।

पूरा मामला क्या है?

यह मामला उझानी कोतवाली क्षेत्र के बरायमय खेड़ा गांव का है, जहां 9 अक्टूबर 2023 को राजपाल के घर सांप का जोड़ा निकला। राजपाल ने सांपों को लाठी से पीटकर मार डाला। पशु प्रेमी विकेंद्र शर्मा ने इस घटना को लेकर राजपाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। जांच की जिम्मेदारी उस समय उझानी में तैनात दरोगा मुकेश त्यागी को सौंपी गई थी।

जांच के दौरान राजपाल के साथ जसपाल नाम के व्यक्ति को भी इस मामले में आरोपित किया गया। दरोगा ने राजपाल और जसपाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। हालांकि, जसपाल के परिवार को तब यह जानकारी मिली जब कोर्ट का नोटिस उनके घर पहुंचा। जसपाल के बेटे ने वकील के माध्यम से कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर सूचित किया कि जसपाल की मौत 2015 में ही हो चुकी है।

पुलिस पर सवाल: बिना पहचान पत्र कैसे तामील हुआ नोटिस?

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि दरोगा ने बिना पहचान पत्र जांच को कैसे आगे बढ़ाया? यह पुलिस की जांच प्रक्रिया में गंभीर कमी को दर्शाता है। पहचान पत्र या आधार कार्ड की मांग किए बिना नोटिस तामील कराना न केवल लापरवाही है, बल्कि इससे निर्दोष व्यक्ति को भी गलत तरीके से फंसाया जा सकता है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि जांच अधिकारी ने बुनियादी जांच प्रक्रिया को नजरअंदाज किया और बिना सत्यापन के चार्जशीट दाखिल कर दी।

मुख्य आरोपी पर आरोप

दरोगा ने अपने बयान में सारा ठीकरा मुख्य आरोपी राजपाल पर फोड़ा है। उनका कहना है कि राजपाल ने उन्हें गुमराह किया और मृत व्यक्ति का नाम तफ्तीश में शामिल कराया। दरोगा का दावा है कि राजपाल ने उन्हें जसपाल के रूप में एक अन्य व्यक्ति से मिलवाया और यह नहीं बताया कि जसपाल की मृत्यु हो चुकी है। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या एक पुलिस अधिकारी का इस प्रकार बिना किसी दस्तावेजी प्रमाण के किसी व्यक्ति पर भरोसा करना सही है?

कोर्ट की भूमिका और आगामी सुनवाई

जब जसपाल के परिवार को इस मामले में नोटिस मिला, तो उसके बेटे ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दायर कर स्थिति स्पष्ट की। इसके बाद कोर्ट ने उझानी पुलिस से आख्या तलब की। उझानी एसएचओ ने अपनी आख्या कोर्ट में पेश करते हुए बताया कि उन्होंने फोन पर दरोगा से इस मामले में बात की थी, जिसमें दरोगा ने जसपाल के नाम को जांच में शामिल किए जाने की पुष्टि की थी।

अब इस मामले की सुनवाई 17 सितंबर को होनी है, जिसमें दरोगा की भूमिका और मामले की सच्चाई पर गहराई से चर्चा होने की संभावना है।

पुलिस की लापरवाही या प्रणालीगत खामी?

यह मामला उत्तर प्रदेश पुलिस की तफ्तीश प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। एक मृत व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करना न केवल तफ्तीश में खामी को दर्शाता है, बल्कि यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है। पुलिस द्वारा बुनियादी दस्तावेजों की जांच किए बिना किसी को आरोपी बनाना न केवल लापरवाही है, बल्कि यह नागरिक अधिकारों का हनन भी हो सकता है।

पुलिस की इस गलती से यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस तफ्तीश में पेशेवर रवैये का पालन किया जाता है? या फिर यह एक प्रणालीगत समस्या है, जहां पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी के चलते ऐसे गंभीर गलतियां हो रही हैं?

इस मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली और जांच प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए पुलिस को अपनी जांच प्रक्रियाओं में अधिक सतर्कता और पेशेवर रवैया अपनाना होगा। जांच अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी मामले में सत्यापन प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाए, और किसी भी आरोपी को केवल ठोस सबूतों और दस्तावेजों के आधार पर चार्जशीट में शामिल किया जाए।

इसके अलावा, न्यायालय को भी इस मामले में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दोषी को सजा मिले और निर्दोष लोगों को फंसाने से बचाया जा सके। अदालत की भूमिका यहां महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कानूनी प्रक्रिया का संरक्षक होता है और न्याय सुनिश्चित करना इसका प्रमुख कार्य है।

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