नमस्कार,
आप और अपनी फैमिली की हेल्थ का ध्यान अच्छे से रख सकें। इसके लिए हम नई रिसर्च लाए हैं। इसमें आप जान सकेंगे कि किस तरह ज्यादा या कम गतिविधि से हमार सेहत पर क्या असर पढ़ रहा है। इसमें आपको मिलेंगे प्रमुख हेल्थ अपडेट्स, महत्वपूर्ण रिसर्च से जुड़े आंकड़े और डॉक्टरों की रेलेवेंट सलाह। इसे मात्र 2 मिनट में पढ़कर आपको सेहत से जुड़ी जरूरी।
NIH ने तैयार किया स्मार्ट मास्क, जो आपकी सेहत का रखेगा ध्यान
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा एक स्मार्ट मास्क बनाया गया है। जिसे पहनकर न केवल आप अपनी सांसों की सुरक्षा कर सकते हैं। बल्कि आपकी हर सांस आपके स्वास्थ्य का हाल बता सकती है। मास्क की खासियत यह है कि यह आपकी श्वास में मौजूद रसायनों का विश्लेषण कर फेफड़ों और श्वसन तंत्र की स्थिति की जानकारी देता है। यह तकनीक आपकी सांसों संबंधित रोगों की पहचान करने में मदद करेगी।
सेंसरों और एल्गोरिदम से लैस है ये मास्क
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा 17 सितंबर 2024 को प्रकाशित इस तकनीकी आविष्कार ने स्वास्थ्य निगरानी के क्षेत्र में एक नई क्रांति ला दी है। यह स्मार्ट मास्क कई आधुनिक सेंसरों और एल्गोरिदम से लैस है। जो व्यक्ति की श्वास में मौजूद विभिन्न रसायनों का विश्लेषण कर स्वास्थ्य संकेतकों का पता लगाता है।
यह स्मार्ट मास्क एक अत्याधुनिक तकनीकी उपकरण है, जिसमें उन्नत सेंसर लगे हैं जो श्वास में मौजूद विभिन्न रासायनिक यौगिकों की पहचान करते हैं। इन यौगिकों के विश्लेषण के आधार पर, यह मास्क व्यक्ति के फेफड़ों और श्वसन तंत्र की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
जब हम सांस लेते हैं, तो हमारी श्वास में कई वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (volatile organic compounds, VOCs) होते हैं। ये यौगिक हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। स्मार्ट मास्क इन VOCs का विश्लेषण कर फेफड़ों के स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगाता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रिक ऑक्साइड (Nitric Oxide) का उच्च स्तर श्वसन रोगों का संकेत हो सकता है, जैसे अस्थमा या ब्रोंकाइटिस।
पहले ही पता लग जाएगा महिलाओं में ह्रदय रोग की संभावना
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा 17 सितंबर 2024 को प्रकाशित एक नवीनतम अध्ययन में पाया गया है कि महिलाओं में हृदय रोग का खतरा दशकों पहले एक साधारण रक्त परीक्षण के माध्यम से पहचाना जा सकता है। इस शोध ने एक विशेष प्रकार के बायोमार्कर की पहचान की है। जो महिलाओं में हृदय रोग का सटीक संकेत दे सकता है। जिससे समय रहते बचाव के उपाय अपनाए जा सकते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिसर्च में में आया सामने
इस अध्ययन में 3,000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 30 से 60 वर्ष के बीच थी। प्रतिभागियों के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिसमें शोधकर्ताओं ने विशेष प्रकार के बायोमार्करों की पहचान की। बायोमार्कर वे जैविक संकेतक होते हैं, जो किसी व्यक्ति के शरीर में होने वाली गतिविधियों और संभावित बीमारियों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
शोध में पाया गया कि जिन महिलाओं के रक्त में कुछ विशिष्ट बायोमार्करों का स्तर असामान्य रूप से उच्च था, उनमें आने वाले वर्षों में हृदय रोग विकसित होने की संभावना अधिक थी। यह अध्ययन महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि अब एक साधारण रक्त परीक्षण के जरिए हृदय रोग का खतरा पहचाना जा सकता है, जिससे उन्हें समय रहते निवारक उपाय अपनाने का मौका मिलेगा।
बायोमार्कर क्या हैं और यह कैसे काम करते हैं?
किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति का संकेत देते हैं। ये प्रोटीन, एंजाइम, या अन्य रसायन हो सकते हैं, जो किसी बीमारी के विकास या उसके जोखिम को दर्शाते हैं। हृदय रोग के मामले में, बायोमार्कर शरीर में सूजन, रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर दबाव, या हृदय के कार्य करने की क्षमता का संकेत दे सकते हैं।
NIH के शोधकर्ताओं ने बायोमार्करों का उपयोग करके यह निर्धारित किया कि कौन सी महिलाएं भविष्य में हृदय रोग का सामना कर सकती हैं। यह खोज विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। क्योंकि महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण अक्सर पुरुषों की तुलना में कम स्पष्ट होते हैं। इस नए रक्त परीक्षण के जरिए अब डॉक्टर और मरीज हृदय रोग की भविष्यवाणी कर सकते हैं और समय रहते आवश्यक कदम उठा सकते हैं।
हृदय रोग का पूर्वानुमान कैसे मददगार है
हृदय रोग का समय रहते पूर्वानुमान लगाकर, मरीज और चिकित्सक इसके लिए निवारक उपाय कर सकते हैं। यह पूर्वानुमान खासतौर पर उन महिलाओं के लिए मददगार साबित होगा, जिनमें हृदय रोग के लक्षण छिपे हुए होते हैं। यदि बायोमार्कर परीक्षण में हृदय रोग का खतरा पाया जाता है, तो इससे बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
दवाइयां लेने के बाद भी सिकल सेल रोगियों में स्ट्रोक का खतरा
सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease, SCD) एक गंभीर आनुवांशिक विकार है जिसमें शरीर की लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य रूप से आकार बदलकर ‘हंसिये’ के आकार की हो जाती हैं। यह विकार रक्त कोशिकाओं की प्राकृतिक क्रियाओं में बाधा डालता है और उन्हें शरीर के विभिन्न हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचाने से रोकता है। सामान्य रक्त कोशिकाएं गोल होती हैं और आसानी से रक्त प्रवाह के साथ चलती रहती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में, ये कोशिकाएं चिपचिपी और कठोर हो जाती हैं। जिससे रक्त वाहिकाओं में फंस जाती हैं। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। जिससे कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जिनमें स्ट्रोक प्रमुख है।
क्या होता है सिकल सेल रोग
सिकल सेल रोग में, हंसिये के आकार की रक्त कोशिकाएं शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त प्रवाह को बाधित करती हैं। जब यह बाधा मस्तिष्क तक पहुंचती है। तो वहां ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है और मस्तिष्क का वह हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप स्ट्रोक होता है।
मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिलने से बढ़ता है रोग
सिकल सेल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में स्ट्रोक का खतरा सामान्य जनसंख्या की तुलना में कई गुना अधिक होता है। सामान्य रूप से, यह रोग मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को बाधित करता है। जिससे अचानक मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिलती और इसका परिणाम स्ट्रोक के रूप में निकलता है। बच्चों से लेकर वयस्कों तक इस विकार से जूझ रहे लोगों में स्ट्रोक की घटनाएँ अधिक देखी जाती हैं।
हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन जो 19 सितंबर 2024 को जारी किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि वर्तमान चिकित्सा उपचार के बावजूद भी सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों में स्ट्रोक की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
इसका कारण यह हो सकता है कि नियमित चिकित्सा उपचार से भी यह रोग पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो पा रहा है। जिन रोगियों को नियमित रूप से हाइड्रॉक्सीयूरिया (Hydroxyurea) जैसी दवाइयाँ दी जा रही थीं और जिनका समय-समय पर रक्त बदलने का इलाज हो रहा था। उनमें भी स्ट्रोक की दर में कमी नहीं देखी गई।
सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों में चाहे वे बच्चों हों या वयस्क, स्ट्रोक की दर बढ़ रही है। भले ही उन्हें चिकित्सा निर्देशानुसार इलाज मिल रहा हो। यह अध्ययन अमेरिका के विभिन्न अस्पतालों में 10 वर्षों तक किए गए चिकित्सा रिकॉर्ड्स पर आधारित था और इसमें 1,000 से अधिक सिकल सेल रोगियों को शामिल किया गया था।
बचाव : सिकल सेल रोगियों को नियमित रूप से चिकित्सीय निगरानी में रहना चाहिए। हाइड्रॉक्सीयूरिया जैसी दवाइयाँ जो रक्त कोशिकाओं की बनावट को सुधारने का काम करती हैं। का नियमित सेवन आवश्यक है। इसके अलावा, समय-समय पर रक्त बदलने की प्रक्रिया से भी रोगियों को फायदा होता है।
मां बाप को पसंद वाली चीजें बच्चे खाने के लिए पसंद करते हैं
हमारे जीवन में भोजन का महत्व केवल पोषण तक ही सीमित नहीं है। यह हमारी संस्कृति, परिवार, और व्यक्तिगत पसंद से भी जुड़ा है। एक दिलचस्प अध्ययन में पाया गया है कि हमारी खाद्य आदतों पर केवल हमारे सामाजिक परिवेश का ही प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि हमारी आनुवांशिकी भी इसमें अहम भूमिका निभाती है।
वारविक विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस अध्ययन ने साबित किया है कि बच्चों की खाद्य आदतें काफी हद तक उनके डीएनए में मौजूद आनुवांशिक गुणों से प्रभावित होती हैं। यह अध्ययन 5 से 15 वर्ष की आयु के 2,500 से अधिक बच्चों पर आधारित था।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चों द्वारा चुने गए खाद्य पदार्थों पर उनके परिवार से मिले आनुवांशिक गुणों का प्रभाव होता है। कुछ बच्चे आनुवंशिक रूप से मीठे या वसायुक्त भोजन की ओर झुकाव रखते हैं। जबकि कुछ बच्चे फल और सब्जियों को पसंद करते हैं।
यह अध्ययन यह भी बताता है कि बचपन में जो खाद्य आदतें विकसित होती हैं। वे आगे चलकर किशोरावस्था और वयस्क जीवन में भी रहती हैं। आनुवांशिकी का प्रभाव इतना गहरा होता है कि कुछ बच्चों में स्वस्थ आहार के बावजूद भी वजन बढ़ने की समस्या होती है। जबकि कुछ बच्चे अपेक्षाकृत कम खाने के बावजूद भी स्वस्थ रहते हैं।
हालांकि आनुवांशिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन पोषण शिक्षा और सही भोजन की आदतें भी आवश्यक हैं। माता-पिता और स्कूलों को बच्चों को स्वस्थ आहार अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। एक संतुलित आहार जिसमें फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, और प्रोटीन शामिल हों, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।
बच्चों को भोजन के प्रति जागरूक करना और उन्हें खाने के सही तरीके सिखाना भी महत्वपूर्ण है। इससे बच्चे अपने आनुवांशिक झुकाव के बावजूद स्वस्थ भोजन की आदतें विकसित कर सकते हैं।
एंटीडिप्रेसेंट दवाएं रोकेंगी मस्तिष्क ट्यूमर
मस्तिष्क ट्यूमर का उपचार कठिन होता है और वर्तमान उपचार विधियाँ हमेशा सफल नहीं होती हैं। हालाँकि, हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने मस्तिष्क ट्यूमर के इलाज में एक नई आशा की किरण दिखाई है। इस अध्ययन में पाया गया कि कुछ एंटीडिप्रेसेंट दवाएँ मस्तिष्क ट्यूमर के इलाज में सहायक हो सकती हैं।
इस अध्ययन में 500 मस्तिष्क ट्यूमर रोगियों को शामिल किया गया। उन्हें विभिन्न प्रकार की एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के साथ इलाज किया गया और पाया गया कि कुछ विशेष एंटीडिप्रेसेंट दवाएँ मस्तिष्क कोशिकाओं के विकास को धीमा कर सकती हैं और ट्यूमर के बढ़ने को रोक सकती हैं।
कैंसर उपचार में नई संभावना
यह अध्ययन इस संभावना की ओर इशारा करता है कि एंटीडिप्रेसेंट दवाएँ न केवल मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकती हैं, बल्कि कैंसर उपचार में भी मददगार हो सकती हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन दवाओं का मस्तिष्क ट्यूमर पर प्रभाव कैंसर के इलाज में एक नई दिशा दिखा सकता है।
इस शोध के आधार पर, आगे और भी अध्ययन किए जा रहे हैं ताकि यह समझा जा सके कि एंटीडिप्रेसेंट दवाएँ कैसे और क्यों मस्तिष्क ट्यूमर पर प्रभाव डालती हैं। यदि इस दिशा में और सकारात्मक परिणाम मिलते हैं, तो यह कैंसर उपचार के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति साबित हो सकती है।