दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर काम के बंटवारे के मामले में अपना अहम फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले में 10 जुलाई 2024 को फैसला सुरक्षित रखा था।
पत्रकार सुकन्या शांता की जनहित याचिका
यह मामला तब सामने आया जब पत्रकार सुकन्या शांता ने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया कि देश के 17 राज्यों की जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। उनके मुताबिक, जेल प्रशासन कैदियों को उनकी जाति के आधार पर अलग-अलग प्रकार के काम सौंपता है, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर जनवरी 2024 में पहली सुनवाई की और 17 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। छह महीने के भीतर केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडु ही अपने जवाब दे पाए।

सुकन्या शांता की रिसर्च रिपोर्ट
सुकन्या शांता ने जेलों में जातिगत भेदभाव के मुद्दे पर व्यापक शोध किया था। उनकी रिपोर्ट, जो 2020 में ‘द वायर’ पर प्रकाशित हुई, में उन्होंने बताया कि भारत के 17 राज्यों में कैदियों को जाति के आधार पर काम सौंपा जाता है।
3 प्रमुख राज्यों के उदाहरण
- राजस्थान: यहां अगर कोई कैदी नाई जाति से है, तो उसे बाल और दाढ़ी बनाने का काम दिया जाता है। ब्राह्मण कैदियों को खाना पकाने का काम मिलता है, जबकि वाल्मीकि समाज के कैदियों को सफाई का काम सौंपा जाता है।
- केरल: यहां आदतन अपराधियों और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधियों के बीच अंतर किया जाता है। आदतन डकैतों और चोरों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है और बाकी कैदियों से अलग रखा जाता है।
- उत्तर प्रदेश: यूपी के जेल मैनुअल, 1941 में कैदियों के कामों का बंटवारा जातिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर करने की बात कही गई है। इसमें सफाई, झाड़ू लगाना और अन्य निम्न श्रेणी के काम जातिगत आधार पर आवंटित किए जाते हैं।
-
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जातिगत भेदभाव पर तीखे सवाल
10 जुलाई की आखिरी सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जेल नियमावली का हवाला देते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया। यूपी सरकार ने दावा किया कि उनकी जेलों में कोई जातिगत भेदभाव नहीं होता है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जेल मैनुअल के कुछ प्रावधानों को पढ़कर सरकार को फटकार लगाई।
इस सवाल पर, यूपी सरकार कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाई। इसी तरह, पश्चिम बंगाल के जेल नियमों में भी जातिगत भेदभाव के प्रावधान पाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के वकीलों से भी जेल नियम पढ़ने को कहा और यह भी पूछा कि क्या इसमें उन्हें कोई समस्या नहीं दिखती। बेंच ने जेल नियमों को “बेहद तकलीफदेह” बताया।

केंद्र सरकार ने भेदभाव के खिलाफ नोटिस जारी किया था
केंद्र सरकार ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाई थी। गृह मंत्रालय ने फरवरी 2024 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक नोटिस जारी किया। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि जेलों में कैदियों के साथ जाति, धर्म, नस्ल, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव गैर-कानूनी है। इस नोटिस में राज्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि उनके जेल नियमों में किसी प्रकार का भेदभावपूर्ण प्रावधान न हो।
सुप्रीम कोर्ट का संभावित फैसला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल जेलों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, बल्कि भारतीय संविधान के तहत कैदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। जातिगत भेदभाव के खिलाफ यह फैसला जेल सुधार के व्यापक मुद्दे पर एक नई दिशा प्रदान करेगा।