अघोरी साधु कौन होते और कैसे रहते, जानिए इनकी रहस्यमयी बातें

संगम यादव। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में जहां करोड़ों श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना कर रहे हैं, वहीं इस आस्था के पर्व पर अघोरी साधुओं की उपस्थिति ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाए, श्मशान में साधना करने वाले और सांसारिक जीवन के हर बंधन से परे दिखने वाले ये साधु हमेशा से रहस्य और कौतूहल का विषय रहे हैं।

महाकुंभ का यह आयोजन, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला कहा जाता है, केवल पवित्र स्नान या धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यहां अघोरी साधुओं की जीवनशैली और उनकी साधना के गूढ़ रहस्यों को करीब से देखने और समझने का अवसर भी मिलता है। संगम के तट पर इन साधुओं को देखकर श्रद्धालु उनकी साधना, भक्ति और अनूठी जीवनशैली के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।

कौने होते हैं अघोरी बाबा
अघोरी साधु वे साधक होते हैं जो शिव के सबसे भयावह और रौद्र रूप, भगवान अघोरनाथ (भैरव) की उपासना करते हैं। ये साधु मानते हैं कि संसार में कुछ भी अपवित्र नहीं है, और सृष्टि के हर पहलू को स्वीकार करना ही मोक्ष की ओर पहला कदम है। अघोरी बाबा, शिव के अनन्य साधक, तंत्र साधना के गहरे रहस्यों से परिपूर्ण जीवन जीते हैं। उनकी साधना,व्यवहार और जीवनशैली सामान्य जनमानस के लिए कौतूहल का विषय है। अघोरी अपने शरीर पर श्मशान की भस्म लगाते हैं, श्मशान में रहते हैं, मांसाहार करते हैं और ऐसी साधनाएं करते हैं जो आमतौर पर लोगों के लिए रहस्यमयी प्रतीत होती हैं। कहते हैं कि अघोरी साधुओं का जीवन शिव की भक्ति और साधना का प्रतीक है। उनके शरीर पर भस्म लगाना मात्र एक क्रिया नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक अर्थ से भरा हुआ है। चिता की राख, जिसे वे अपने शरीर पर धारण करते हैं, नश्वरता और मृत्यु का प्रतीक है। यह उनके लिए इस तथ्य की स्मृति है कि मानव शरीर अस्थायी है और अंततः मिट्टी में मिल जाता है। साथ ही, यह उन्हें अहंकार और भौतिक इच्छाओं से मुक्त रहने की प्रेरणा देता है।

मांस का सेवन करते 
अघोरी मांसाहार करते हैं, जो उनकी साधना का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके अनुसार, सृष्टि में कोई भी वस्तु अपवित्र नहीं है। मांसाहार के माध्यम से वे इस विचार को अपनाते हैं कि संसार की हर वस्तु समान है, चाहे वह कैसा भी प्रतीत हो। उनके लिए यह अभ्यास सांसारिक भेदभाव और घृणा को त्यागने का प्रतीक है।

काली और शिव की साधना 
अघोरी साधुओं का मानना है कि उनकी साधना का केंद्र भगवान शिव और मां काली हैं। शिव, जिन्हें श्मशानवासी भी कहा जाता है, मृत्यु और जीवन के अंतिम सत्य के प्रतीक हैं। अघोरी उसी सत्य को समझने और स्वीकारने के लिए श्मशान में रहते हैं। महाकुंभ के दौरान, ये साधु विशेष साधनाओं में लीन रहते हैं, जो उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करती हैं।

सुबह उठते ही श्मशान की भास्म लगाते हैं
श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा कौतूहल अघोरी साधुओं की दिनचर्या है। ये साधु भोर में उठकर चिता की भस्म से स्नान करते हैं, और मंत्रों का जाप करते हुए अपनी साधना शुरू करते हैं। उनका अधिकांश समय श्मशान में ध्यान और तांत्रिक अनुष्ठानों में व्यतीत होता है। कई साधु तो मौन व्रत रखते हैं और अपनी साधना के माध्यम से आत्मा के गूढ़ रहस्यों को जानने की कोशिश करते हैं।

अघोर मंत्र और उसका महत्व
अघोरी साधु तांत्रिक साधना में “अघोर मंत्र” का जप करते हैं। शिवपुराण और तंत्र ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। अघोर मंत्र इस प्रकार है:
“ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः।
सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमः श‍िवाय ते नमः।”
अर्थ- इस मंत्र में शिव को सभी भयावह और भयानक स्वरूपों के स्वामी के रूप में प्रणाम किया गया है।
यह मंत्र साधक को भय से मुक्त करता है और मृत्यु के सत्य को स्वीकार करने की शक्ति प्रदान करता है।

अघोरी बाबा कौन होते हैं और कैसे बनते हैं

अघोरी बाबा भारतीय साधुओं के एक विशिष्ट संप्रदाय से संबंधित होते हैं, जो मुख्य रूप से हिंदू धर्म की तंत्र साधना और शिव भक्ति से जुड़े होते हैं। इनका जीवन, दर्शन और साधना प्राचीन तंत्र परंपरा पर आधारित है। “अघोर” शब्द का अर्थ है “जो भयावह नहीं है” या “जो सरल और सहज है।” अघोरी साधु शिव के “अघोर” स्वरूप के उपासक होते हैं और उन्हें सृष्टि के सभी तत्वों को समान दृष्टि से देखने और स्वीकारने की शिक्षा दी जाती है।

1. गुरु की शरण
अघोरी साधना के लिए एक योग्य गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु ही शिष्य को अघोरी परंपरा के रहस्यों और साधना की विधियों का ज्ञान देते हैं। बिना गुरु के मार्गदर्शन के अघोरी साधना में प्रवेश करना असंभव माना जाता है।

2. दुनियावी मोह-माया का त्याग
अघोरी बनने के लिए व्यक्ति को समाज, परिवार और भौतिक जीवन के सभी बंधनों को त्यागना पड़ता है। साधक को अपनी पहचान, अहंकार और सांसारिक इच्छाओं को समाप्त करना होता है।

3. श्मशान साधना
अघोरी साधु अक्सर श्मशान घाटों पर साधना करते हैं। उनका मानना है कि मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है और श्मशान घाट जीवन और मृत्यु के बीच का द्वार है। यहां वे भगवान शिव और मां काली की आराधना करते हैं।

4. तंत्र साधना
अघोरी तंत्र साधना का अभ्यास करते हैं, जिसमें मंत्र, यंत्र और ध्यान का समावेश होता है। इनकी साधना का उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के बीच का संबंध समझना होता है।

5. शव साधना
अघोरी साधु शव साधना का अभ्यास करते हैं। इसे उनके साधना का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। शव साधना के दौरान वे शव के ऊपर बैठकर मंत्रों का जाप करते हैं। इसे मृत्यु को समझने और भय पर विजय पाने का माध्यम माना जाता है।

6. भिक्षा और भक्षण
अघोरी बाबा केवल भिक्षा पर निर्भर रहते हैं और कभी-कभी श्मशान घाटों में मिलने वाले अवशेषों को भी भोजन के रूप में स्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि यह भेदभाव को समाप्त करने और हर चीज को स्वीकारने की साधना है।

वेशभूषा
अघोरी साधु आमतौर पर वस्त्र नहीं पहनते या बहुत कम पहनते हैं। वे अपने शरीर पर भस्म (श्मशान की राख) लगाते हैं, जो मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है।

रहने का स्थान
अघोरी साधु श्मशान घाटों, गुफाओं, जंगलों या नदी किनारे निवास करते हैं।

भोजन और पेय
अघोरी साधु भोजन और पेय के मामले में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते। वे श्मशान घाटों में पाई जाने वाली चीजें, जैसे मांस या कंदमूल, को भी स्वीकार कर लेते हैं। उनका मानना है कि सभी चीजें परमात्मा द्वारा बनाई गई हैं और उन्हें समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।

धार्मिक दृष्टिकोण
अघोरी साधु यह मानते हैं कि जीवन में कोई चीज अपवित्र नहीं है। वे यह भी मानते हैं कि हर जीवित प्राणी और निर्जीव वस्तु में भगवान शिव का वास है।

अघोरी परंपरा का धार्मिक और ऐतिहासिक स्रोत
1. वेद और उपनिषद
वेदों और उपनिषदों में तंत्र साधना और शिव के रौद्र रूप का वर्णन मिलता है। “अघोर मंत्र” का उल्लेख शिव पूजा के दौरान किया जाता है।

2. तंत्र शास्त्र
तंत्र शास्त्र अघोरी परंपरा का मुख्य स्रोत है। इसमें साधना की विधियों और नियमों का विस्तार से वर्णन है।

3. शैवागम ग्रंथ
शैवागम ग्रंथों में भगवान शिव के अघोर स्वरूप और उनके साधकों का वर्णन मिलता है।

4. पुराण
शिव पुराण: इसमें भगवान शिव के अघोर रूप और उनकी तंत्र साधना का उल्लेख मिलता है।
कालिका पुराण: इसमें मां काली की पूजा और तंत्र साधना की विधियों का विवरण दिया गया है।

5. योग और ध्यान ग्रंथ
अघोरी साधना में योग और ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है। “हठयोग प्रदीपिका” और “गोरख संहिता” जैसे ग्रंथ भी इनकी परंपरा को प्रभावित करते हैं।

सती की मृत्यु से शिव अत्यंत क्रोधित हो गए-कथा का वर्णन 
राजा दक्ष, जो सती (शिव की पत्नी) के पिता थे, ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। यह सती के लिए बड़ा अपमान था। जब सती ने यज्ञ में जाने का निर्णय लिया, तो भगवान शिव ने उन्हें रोका, लेकिन सती नहीं मानीं। यज्ञ में पहुंचकर सती ने अपने पिता दक्ष को भगवान शिव का अपमान करते देखा। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। सती की मृत्यु से शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने अघोर स्वरूप को प्रकट किया। इस स्वरूप में शिव ने अपनी तीसरी आंख खोलकर यज्ञ स्थल को भस्म कर दिया।
शिव के इस अघोर रूप ने सभी देवताओं और ऋषियों को भयभीत कर दिया। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिव से क्षमा मांगी और उनके अघोर स्वरूप की महिमा को स्वीकार किया। इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि भगवान शिव की शक्ति अपवित्रता, अन्याय और अज्ञानता को समाप्त करने में सक्षम है।
शिव पुराण, कालिका पुराण,तंत्र शास्त्र, योग और ध्यान ग्रंथ में भी अघोरी का जिक्र है।

नोट::: ये लेख मीडिया रिपोर्ट्स और लेखक ने अपनी सोर्स से जानकारी  के अुनसार है। दैनिक उजाला24 इनकी पुष्टि नहीं करता है। 

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