जानिए गुजिया का इतिहास, पहली बार बनने की रोचक कहानी और पहले इसे क्या कहते थे, मुगल ने भी बड़े चाव से खाई

लेखक : संगम यादव 

गुजिया एक ऐसी मिठाई है, जो होली पर हमारी थाली में जरूर होती है। इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई, यह जानना बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि इसकी जड़ें प्राचीन भारत में हैं, जहां इसे ‘करणिका’ के नाम से जाना जाता था। यह सूखे मेवों और शहद से बनाई जाती थी और खास मौकों पर परोसी जाती थी। मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) की मूर्तियों में भी गुजिया जैसी मिठाइयों के संकेत मिलते हैं। वहीं, 13वीं शताब्दी में इसका जिक्र तब मिलता है। जब गुड़ और शहद के मिश्रण को गेहूं के आटे में लपेटकर धूप में सुखाया जाता था।

इतिहासकारों का मानना है कि तुर्की की प्रसिद्ध मिठाई ‘बकलावा’ और गुजिया के बीच काफी समानताएं हैं। बकलावा भी आटे की परतों में सूखे मेवों की स्टफिंग करके बनाई जाती है, बस इसका आटा ज्यादा मुलायम होता है। यह भी संभव है कि भारत में आने वाले व्यापारियों और आक्रमणकारियों ने इस मिठाई को भारत तक पहुंचाया हो, और फिर इसे भारतीय स्वाद के अनुसार ढाल लिया गया हो।

मुगल काल (16वीं-18वीं शताब्दी) में गुजिया को एक नई पहचान मिली। इसी दौरान इसमें खोया (मावा) डालने की परंपरा शुरू हुई, जिससे यह और ज्यादा स्वादिष्ट बन गई। यही वह समय था जब गुजिया आम मिठाइयों से ऊपर उठकर खुशी और समृद्धि का प्रतीक बन गई।

होली पर गुजिया का ज्यादा महत्व
गुजिया और होली का रिश्ता बहुत पुराना है। इसे भगवान कृष्ण की पसंदीदा मिठाइयों में से एक माना जाता है, इसलिए वृंदावन और मथुरा में होली के अवसर पर गुजिया चढ़ाई जाती है। होली के अलावा, दिवाली जैसे त्योहारों पर भी गुजिया बनाई जाती है। उपहार के तौर पर दी जाने वाली मिठाइयों में यह खास जगह रखती है।

गुजिया कई तरीकों से बनाई जाती है
गुजिया सिर्फ एक ही तरह की नहीं होती, बल्कि इसके कई रूप हैं। कुछ प्रसिद्ध प्रकार इस प्रकार हैं। खोए और मेवों से भरी पारंपरिक गुजिया बनाई जाती है, सूजी गुजिया सूजी और नारियल से बनी हल्की और कुरकुरी होती है। बेक्ड गुजिया कम तेल में बनी हेल्दी होती है। केसर गुजिया केसर की खुशबू और शाही स्वाद से भरपूर होती है। चंद्रकला और सूर्यकला गोलाकार और ज्यादा भरावन वाली होती। इनके बलावा बच्चों के लिए खासतौर पर बनाई जाने वाली मॉडर्न होती है। जिसे आजकल ज्यादा पसंद किया जाता है।

 

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