टोक्यो, एजेंसी। कल्पना कीजिए आप एक दूरदराज़ गांव में हैं, सड़क हादसे में किसी को गंभीर चोट आई है, खून बह रहा है और पास में न तो कोई ब्लड बैंक है, न सही ब्लड ग्रुप मिल पा रहा है। अब तक ऐसी स्थिति में मरीज की जान जाना तय होती थी। लेकिन जल्द ही विज्ञान इस पर रोक लगाने वाला है। जापान के वैज्ञानिकों ने ऐसा आर्टिफिशियल खून तैयार किया है जिसे किसी भी ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को चढ़ाया जा सकता है और जो बिना फ्रीज के भी महीनों तक सुरक्षित रह सकता है। यह खोज मेडिकल साइंस के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है, जो न केवल इलाज को तेज बनाएगा, बल्कि लाखों जानें बचा सकता है।
जापान के रक्षा मंत्रालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने यह कृत्रिम खून (Artificial Blood) तैयार किया है। यह खून इंसानी शरीर में असली खून की तरह ही काम करता है, ऑक्सीजन को अंगों तक पहुंचाता है, लेकिन इसमें ब्लड ग्रुप की बाध्यता नहीं होती। यानी इसे A, B, AB या O किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज को चढ़ाया जा सकता है।
इंसानी खून में कुछ खास पहचान वाले मार्कर होते हैं जो यह तय करते हैं कि उसका ब्लड ग्रुप क्या है। आर्टिफिशियल खून में ये मार्कर नहीं होते, जिससे शरीर उसे किसी बाहरी चीज़ के रूप में नहीं पहचानता और वह बिना किसी रिएक्शन के शरीर में घुल मिल जाता है।
इतना ही नहीं, यह खून स्टरलाइज्ड (निर्जीवाणु) होता है, यानी इसमें संक्रमण फैलाने वाले वायरस, बैक्टीरिया या किसी तरह के रोगजनक नहीं होते। इस वजह से यह एचआईवी, हेपेटाइटिस या अन्य संक्रामक बीमारियों के खतरे से पूरी तरह मुक्त है।
आज के समय में किसी भी ऑपरेशन, ट्रॉमा केस या बड़े एक्सीडेंट में सबसे पहली जरूरत होती है, सही ब्लड ग्रुप का खून। लेकिन असलियत में यह सबसे बड़ी चुनौती भी होती है। कई बार मरीज का ब्लड ग्रुप पता करने में देरी होती है या उपलब्ध नहीं होता। अब आर्टिफिशियल खून इस देरी को खत्म कर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक मिलिट्री, आपदा राहत, ग्रामीण चिकित्सा और रिमोट एरिया हेल्थ सर्विसेज में बेहद कारगर हो सकती है, जहां ब्लड बैंक या फ्रिज जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं।
इस वक्त यह आर्टिफिशियल खून इंसानों पर प्रारंभिक ट्रायल के दौर में है। जापान की वैज्ञानिक टीम का लक्ष्य है कि 2030 तक इसे अस्पतालों और आपातकालीन सेवाओं में उपयोग के लिए मंजूरी मिल जाए। शुरुआती ट्रायल में किसी भी गंभीर साइड इफेक्ट की पुष्टि नहीं हुई है, जो इसकी सुरक्षा और प्रभावशीलता का संकेत है। इस दिशा में अमेरिका, जर्मनी और यूके की रिसर्च संस्थाएं भी काम कर रही हैं, लेकिन जापान की टीम ने इस क्षेत्र में सबसे अधिक प्रगति की है।